अमर जुबानी

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गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

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  • (शीर्षकहीन)
      रोटी और सत्ता पलटते रहो और समान कोई भी खरीदो बस दुकानदार बदलते रहो   🤣
  • (शीर्षकहीन)
    विक्षुब्ध ह्रदय संताप प्रभा का बयां करू या कष्ट फूलो का स्फुटित करू | है कालचक्र का ये कैसा पग घनघोर प्रलय को कैसे कहूँ | उदीप्त रह...

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